उत्तराखंड स्वास्थ्य महानिदेशालय में पानी की व्यवस्था कर पाने में नाकाम अधिकारी क्या कर सकेंगे धरातल पर बेहतर काम…?
देहरादून : उत्तराखंड स्वास्थ्य महानिदेशालय में इस समय दुर्गंध ही दुर्गंध फैली हुई है पिछले एक सप्ताह से ज्यादा का समय बीत गया है। स्वास्थ्य महानिदेशालय में पानी की आपूर्ति तक नहीं हो पाई है ,जिसके बाद टैंकर के जरिए बड़े अधिकारियों की सुविधाओं को देखते हुए पानी पहुंचा जा रहा है। लेकिन विभाग के सार्वजनिक शौचालय में पानी की आपूर्ति ना होने के चलते बदबू फैली हुई है, जो अधिकारियों को भी महसूस हो रही है लेकिन फेल सिस्टम इसे दुरुस्त करने में नाकाम ही साबित हो रहा है महानिदेशालय में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या काफी ज्यादा है ऐसे में पानी मुख्यालय में न होने के चलते महिलाएं खासी परेशान हो रही है लेकिन इस बात का किसी को जरा भी ख्याल नहीं है कि व्यवस्थाओं को कैसे बेहतर किया जाता है, डीजी हेल्थ के आसपास बैठने वाला स्टाफ भी अपनी सुविधाओं को तर्जियत देते हुए व्यवस्था के ना बिगड़े होने की बात कह देता है उन्हें भी हालातो की हकीकत से बचने की आदत हो गई है दरअसल महानिदेशालय में जिन अधिकारियों के पास यह जिम्मेदारी है कि महानिदेशालय के प्रांगण को किस प्रकार से बेहतर बनाया जाए उस ओर उनका ध्यान तक नहीं जाता, जिससे हालात और भी ज्यादा बत्तर होते चले जा रहे हैं।
स्वास्थ्य महानिदेशक के इर्द-गिर्द बैठने वाले स्टाफ को भी मानो जैसे अब वही सुविधा मिलती हैं जो डीजी हेल्थ को मिलती है, जिसके चलते वह अधिकारियों को हकीकत से भी रूबरू नहीं कराते कि महानिदेशालय में स्टाफ को किस प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। पिछले दिनों महानिदेशालय की बिजली तक कट गई थी जिसके बाद दो दिन तक जनरेटर की मदद से बिजली की आपूर्ति हुई लेकिन महानिदेशक के स्टाफ में बैठे एक सज्जन ने तो इस बात से भी इंकार कर दिया कि यहां बिजली कभी जाती भी है इसलिए उन्हें इस बात का कोई आभास भी नहीं है कि परेशानी किसे कहते है। हालांकि स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ विनीत शाह ने बताया कि पानी की आपूर्ति को लेकर निर्देश दिए गए हैं। बोरवेल की व्यवस्था को दुरुस्त करते हुए पानी की आपूर्ति करने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे महानिदेशालय में जल्द से जल्द व्यवस्था बेहतर हो सके। आपको बता दें कि इससे पहले भी कई बार इस तरीके के हालात पैदा हो चुके हैं लेकिन सबक लेने को कोई अधिकारी तैयार नहीं है ऐसे में विभाग के उन अधिकारियों पर भी सवाल उठता है जो अपने ही कार्यालय को बेहतर बनाने में नाकाम साबित हो रहे हैं वह भला राज्य की योजनाओं को कितने बेहतर तरीके से धरातल पर उतारते है।